जल महल नारनौल
हरियाणा के दक्षिणी छोर पर बसा है ऐतिहासिक शहर नारनौल| इस शहर पर 'खंडहर बताते हैं कि इमारत कभी बुलंद थी' वाली कहावत सही चरितार्थ होती है| यहाँ के ऐतिहासिक स्मारक इसके गौरवशाली अतीत की मुंह बोलती तस्वीर हैं| इन्हीं स्मारकों में से एक है- जल महल|
जैसा की नाम से ही जाहिर है यह एक विशाल तालाब में बनाया गया यह छोटा-सा सुंदर भवन है | नगर के दक्षिणी छोर पर पुरानी मंडी के पास स्थित इस महल का निर्माण हिजरी संवत 999 अर्थात 1590-91 ईस्वी में हुआ| इसे नारनौल के तत्कालीन नवाब शाहकुली खान ने बनवाया| शाहकुली खान मुग़ल सम्राट अकबर के शासन काल (1556-1605) के दौरान नारनौल का नवाब/जागीरदार था|
शहर से बाहर एक विशाल तालाब के बीच में ऊँचे चबूतरे पर इस वर्गाकार महल का निर्माण किया गया है| महल का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में है| द्वार पर सुरक्षा कक्ष बने हुए हैं और द्वार से महल तक पहुँचने के लिए 16 मेहराबों पर बने पुल से होकर गुजरना पड़ता है| पुल की चौड़ाई लगभग 15 फुट है और करीब सवा सौ कदम चलकर महल तक पहुंचा जा सकता है|
पुल समाप्त होते ही दो सीढियाँ चढ़कर महल का चबूतरा आ जाता है और महल में प्रवेश कर सकते हैं| चार कक्षों से घिरे हुए महल के वर्गाकार केन्द्रीय कक्ष के चारों कोनों पर चूने के पलस्तर से युक्त प्रस्तर द्वार हैं| जिनपर ज्यामितीय एवं वनस्पतीय आकृतियों का सुंदर अलंकरण किया गया है| महल के चारों ओर ऊपर जाने के लिए सीढियाँ बनी हुई हैं| महल की ऊपरी मंजिल में चारों कोनों में चार लघु कक्ष बने हुए हैं| जो तीन तरफ से खुले हैं, मगर एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं| 10 सीढियाँ चढ़कर इन कक्षों तक पहुंचा जा सकता है| कक्षों की ऊंचाई भी अधिक नहीं है, पर यहाँ हवा निर्बाध रूप से आती है|
महल के चारों तरफ चार कक्ष और बीच में एक केन्द्रीय कक्ष है, जो वर्गाकार है और इसकी लम्बाई-चौड़ाई लगभग 18-20 फुट है| सभी कक्षों की दीवारों और छतों पर सुंदर चित्रकारी की गई है| छतों पर की गई चित्रकारी आज भी वैसी ही चमकदार है, मगर दीवारों पर बनाई गई कलाकृतियाँ वक़्त की मार और मरम्मत के चलते नष्ट हो गई हैं, जिनके कहीं कहीं अवशेष अब भी दिखाई देते हैं| केन्द्रीय कक्ष के दरवाजों पर पत्थर की जालियां लगाकर रोशनदान बनाए गए थे, जिनकी जालियां अब टूट चुकी हैं| वर्गाकार महल के चारों तरफ तीन-तीन द्वार हैं जो आर-पार उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम में खुलते हैं|
जल महल की छत के ऊपर पांच अष्ट भुजाकार छतरियाँ तथा अर्ध चन्द्राकार गुम्बज बना हुआ है| छतरियों में लाल पत्थर के खम्बे लगाये गए हैं| बीच की छतरी बड़ी तथा चारों कोनों पर कुछ छोटे आकार की छतरियाँ बनाई हुई हैं| ये छतरियाँ चारों ओर से देखने पर एक जैसी नज़र आती हैं| जो लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं| महल के चारों ओर छज्जा बनाया हुआ है, जो तोडियों के सहारे रोका गया है| महल की विशेष बात यह है कि यह चारों तरफ से बिलकुल एक जैसा दिखाई देता है|
महल से तालाब में उतरने के लिए दो ओर- पूर्व और पश्चिम में सीढियाँ बनी हुई हैं| दोनों ओर पहले एक चौड़ी सीधी है और फिर वह अंग्रेजी के A अक्षर की तरह दो हिस्सों में नीचे उतरती हैं| यानी एक साथ दो लोग भी नीचे उतर या ऊपर चढ़ सकते हैं| कुल डेढ़ दर्जन सीढियाँ उतरने पर तालाब का तल आता है| सीढियों और तालाब के निर्माण में भी महल की ही तरह चूने और पत्थर का प्रयोग किया गया है| चूना इतना उत्कृष्ट किस्म का है कि आज भी चमक बाकी है|
महल जिस तालाब के बीच बनाया गया है, उसे खान तालाब के नाम से जाना जाता है| वर्गाकार इस तालाब की लम्बाई चौड़ाई करीब 700-700 फुट तथा गहराई लगभग 16 फुट है| विद्वानों का अनुमान है कि जब तालाब पूरा भर जाता होगा तो इसमें लगभग 78.4 लाख घनफुट पानी जमा होता होगा| तालाब में महल से उतरने के अलावा भी सीढियाँ बनी हुई हैं| जो अलग-अलग ढंग से चारों दिशाओं में ही मौजूद हैं| उत्तरी दिशा में प्रवेश द्वार और सुरक्षा कक्षों के साथ पश्चिम में, दक्षिण दिशा और पूर्व में तालाब के मध्य हिस्से में और पश्चिम भाग में जल प्रवेश द्वार के अलावा पूरी दूरी में सीढियाँ मौजूद हैं| करीब 16 सीढियाँ उतरने के बाद तालाब का तल आ जाता है| तालाब की दीवारों की चौड़ाई लगभग चार- साढ़े चार फुट है, जिससे पानी का बहाव उसे प्रभावित नहीं कर सकता|
जल महल के चारों और बने इस खान तालाब में पानी दोहान नदी और अरावली पर्वत श्रृंखला से आता था| जल प्रवेश द्वार बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से बनाया गया था| नदी का पानी आकर पहले एक निचाई वाले स्थान पर जमा होता था और फिर जालियों में से होकर लगभग 20 फुट चौड़े जलद्वार से तालाब में प्रवेश करता था| इससे मिटटी और गाद तालाब में नहीं जाती थी| किन्तु वक़्त के साथ यह व्यवस्था ध्वस्त हो गई |
तालाब में अधिक पानी आने की स्थिति में बचाव के भी उपाय किये गए थे| खान तालाब के पूर्व में एक छोटा तालाब बनाया गया है, जिसे खलील तालाब कहा जाता है| यह तालाब खान तालाब से इस प्रकार जुडा हुआ है कि खान तालाब के ओवरफ्लो होने पर शेष पानी खलील तालाब में जाना शुरू हो जाता है| जब दोनों तालाब लबालब हो जाएँ तो पानी खलील तालाब के पूर्व से धीरे-धीरे बाहर निकल जाता था| पानी आने और निकलने की ऐसी वैज्ञानिक व्यवस्था की हुई थी कि पानी भी पर्याप्त मात्रा में आ जाये और तालाब या महल को नुकसान भी न हो|
यह महल मुग़ल वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है और ऐसे सुंदर भवन कम ही देखने में आते हैं, जो जल के बीच बने हों| इसीलिए केन्द्रीय पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है| भारत सरकार ने 7 अप्रैल, 1961 को अधिसूचना संख्या 855 जारी करके इसे राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक घोषित किया हुआ है| सरकार यहाँ पर्यटन गतिविधियाँ बढाने के लिए प्रयासरत है|